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ठोकरे खाता हूँ पर "शान"से चलता हूँ मै खुले आसमान के नीचे सीना तान के चलता हूँ , मुश्किले तो "साज"है, जिंदगी के। उठूँगा ,गिरूंगा फिर उठूँगा और आखिर मे "जीतूंगा मै ही" ये ठान के चलता हूँ.