ठोकरे खाता हूँ पर
"शान"से चलता हूँ
मै खुले आसमान के
नीचे सीना तान के चलता हूँ ,
मुश्किले तो "साज"है,
जिंदगी के।
उठूँगा ,गिरूंगा फिर उठूँगा
और आखिर मे
"जीतूंगा मै ही"
ये ठान के चलता हूँ.
"शान"से चलता हूँ
मै खुले आसमान के
नीचे सीना तान के चलता हूँ ,
मुश्किले तो "साज"है,
जिंदगी के।
उठूँगा ,गिरूंगा फिर उठूँगा
और आखिर मे
"जीतूंगा मै ही"
ये ठान के चलता हूँ.
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